जीवजीवन
मैं प्रकृति और उसकी रचनाओं को विशेष रूप से जानने-समझने के प्रति बहुत अधिक गम्भीर तो नहीं रहा पर उन्हें देखने-जानने का प्रयास अवश्य करता रहा। सालों से मैं अपने घर-परिसर में तमाम रेंगने, चलने, उड़ने वाले छोटे-बड़े जीव देख रहा हूं। विभिन्न आकार-प्रकार के इन रंग-बिरंगे जीवों ने मुझे बहुत आकर्षित किया पर उनके बारे में मैं कभी पर्याप्त जानकारी नहीं जुटा पाया। कभी अपने कैमरे और कभी मोबाइल फ़ोन के कैमरे में उनको और उनके क्रियाकलापों को कैद करता रहा। बचपन से ही चलते आये फ़ोटोग्राफ़ी के शौक ने अनेक अवसरों पर मेरे आनन्द को (यानी पहले श्याम-धवल ब्लैक एण्ड व्हाइट, फ़िर रंगीन) बढ़ाया है।
आप चाहें तो इस ब्लॉग में प्रकाशित चित्रों में उल्लिखित जीवधारियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी मुझे प्रदान कर सकते हैं।
कई वर्षों के मेरे थोड़े से प्रयास से मेरे पास विभिन्न जीवधारियों का एक अच्छा संग्रह बन गया है। इस संग्रह को बनाने में कुछ समय तो लगा पर इसमें मेरी रुचि थी और इसमें मुझे आनन्द भी खूब आया। आप भी देखिए।
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रविवार, 6 अक्तूबर 2013
शनिवार, 17 अगस्त 2013
चिड़िया-२
मेरे घर आये मेहमान नये
हमारे घर अक्सर छोटी चिड़ियों का एक जोड़ा आता रहता था। मैंने पक्के फ़र्श पर ५-६ इंच ऊंची मिट्टी डालकर ‘खेत’ बनाया हुआ है। इसमें आम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय की बेल के एक पत्ते की सिलाई कर बना घोंसला मुझे बड़ा अच्छा लगा। एक दिन मुझे नीचे मिट्टी में एक अण्डा पड़ा दिखा तो मैंने उसे उठाकर घोंसले में रख दिया। बात आयी-गयी हो गयी।
कुछ दिन बाद याद आया तो वहां जाकर देखा। आनन्द आ गया। घोंसले में बन्द आंखों वाले पीली चौंच वाले कत्थई रंग के ३ बच्चे थे। बड़े आकार वाले चौपहिए के कारण घर का मुख्य द्वार बदले जाने की वजह से आम
के पेड़ का तबादला छत पर करना पड़ा। बेचारी चिड़ियों ने बहुत शोर मचाया। उनके फ़ोटो खींचने के समय भी ऐसा ही होता। बाद में अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होने पर ही वे शांत हुईं। फ़िर वे लोग अपने एक पत्ते के जनता फ़्लैट में रहने लगे।
उन तीन में से दो पता नहीं कब बड़े हुए और उड़ गये। हां, एक बालक की हरकतें हमारी पकड़ में आ गयीं सो प्रस्तुत हैं।
अब मैं बड़ा भी हो गया... |
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मंगलवार, 2 जुलाई 2013
रविवार, 30 जून 2013
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